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देहरादून: उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर चल रहे संवैधानिक संकट के बीच, राज्य सरकार की मंत्रिमंडलीय उप समिति ने ओबीसी आरक्षण पर अपना अंतिम निर्णय ले लिया है। उप समिति अपनी सिफारिश जल्द ही मुख्यमंत्री को सौंपेगी, जिसके बाद पंचायत चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण का फार्मूला तय कर लिया जाएगा।

पंचायत चुनाव कराने को लेकर कोर्ट का दबाव लगातार बना हुआ है, वहीं संवैधानिक संकट ने सरकार पर इसे शीघ्र हल करने का दबाव बढ़ा दिया है। इसी कारण राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लेकर एक मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता वन मंत्री सुबोध उनियाल कर रहे हैं। समिति ने समर्पित आयोग की रिपोर्ट का परीक्षण करने के बाद आरक्षण को लेकर अंतिम निर्णय दिया है।

वर्तमान में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 22% आरक्षण निर्धारित है, जबकि संवैधानिक रूप से कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। इस लिहाज से ओबीसी को पंचायत चुनावों में 28% से अधिक आरक्षण मिलना संभव नहीं है। माना जा रहा है कि उप समिति ने समर्पित आयोग की रिपोर्ट पर सहमति बना ली है और सोमवार को मुख्यमंत्री को अपनी सिफारिश सौंपेगी। इसके बाद यह मामला 11 जून को होने वाली कैबिनेट की बैठक में अंतिम रूप से तय किया जाएगा।

ओबीसी आरक्षण के लिए संभावित फार्मूलों में सबसे अधिक स्वीकार्य यह है कि प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तर पर अलग-अलग सीटों के लिए ओबीसी जनगणना को आधार बनाया जाए। उदाहरण के तौर पर, जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए प्रदेश स्तर की ओबीसी जनगणना, जिला पंचायत सदस्य और ब्लॉक प्रमुखों के लिए जिला स्तर की ओबीसी जनगणना, तथा बीडीसी सदस्य और ग्राम स्तर के लिए ब्लॉक स्तर की जनगणना को आधार माना जाएगा। चूंकि 2011 के बाद कोई नई जनगणना नहीं हुई है, इसलिए इस समय 2011 की जनगणना के आंकड़े ही मान्य होंगे।

राज्य में हरिद्वार जिले को छोड़कर बाकी 12 जिलों में पंचायत चुनाव कराने हैं। हरिद्वार में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव उत्तर प्रदेश के साथ संयुक्त रूप से होते हैं, जबकि बाकी जिलों में चुनावों का फैसला अभी लंबित है। त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों का कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका है और छह महीने का विस्तार भी दिया गया था, जो अब समाप्त हो चुका है। इस कारण राज्य में पंचायत चुनाव न हो पाना एक संवैधानिक संकट की स्थिति बन गया है।

 


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