उत्तराखंड के नैनीताल में कई ऐसे भवन स्थापित है, जो अपने आप में एक इतिहास को समेटे हुए है. ऐसा ही एक ऐतिहासिक भवन है नैनीताल का डीएसबी परिसर जो अपनी स्थापना से लेकर अब तक बेहद खास है. नैनीताल का डीएसबी परिसर जहां से पढ़कर कई विद्यार्थी आज अच्छे मुकाम पर पहुंचे हैं. इतना ही नहीं इस कॉलेज से पड़े बच्चें आज बड़े बड़े पदों को सुशोभित भी कर रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते है जिस 12 एकड़ जमीन में यह परिसर फैला हुआ है उसे दान सिंह बिष्ट मालदार ने सरकार को दान में दिया था.
इसलिए नैनीताल में शिक्षा और शिक्षा के विकास में दान सिंह बिष्ट का योगदान नैनीताल के इतिहास से जुड़ा हुआ है.
इतिहासकार प्रो. अजय रावत ने बताया कि नैनीताल में 1841 के बाद नगरीकरण शुरु हुआ. जिसके बाद 1862 में नैनीताल को उत्तर पश्चिमी प्रांत की राजधानी बना दिया गया. जो बाद में यूनाइटेड प्रांत और बाद में उत्तर प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनी. जिसके बाद यहां कई बेहतरीन शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई जिसमे शेरवुड कॉलेज, सेंट जोसेफ कॉलेज, ऑल सेंट, सैंट मैरी कॉन्वेंट जैसे कई संस्थान खोले गए, लेकिन 1947 के बाद यह महसूस होने लगा की नैनीताल के बच्चे उच्च शिक्षा के लिए कहा जाए, क्योंकि उस समय सम्पन्न परिवार के बच्चे लखनऊ और इलाहाबाद जैसे शहरों में पढ़ने चले जाते थे, लेकिन आम आदमी पढ़ाई से वंचित रह जाता था. जिसको देखते हुए दान सिंह बिष्ट जिन्हें उस समय टिंबर किंग ऑफ इण्डिया कहा जाता था उन्होंने सरकार को नैनीताल में उच्च शिक्षा शुरू करने के लिए 5 लाख रुपए के साथ ही करीब 12 एकड़ भूमि खरीद कर दान में दे दिया.
आगे उन्होंने बताया कि जिसके बाद 1951 के बाद नैनीताल में पहला अंडर ग्रेजुएट कॉलेज और उसके बाद एक पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज की स्थापना की गई. जिसे दान सिंह बिष्ट ने डी.एस.बी यानी अपने पिता के नाम पर देव सिंह बिष्ट राजकीय महाविद्यालय नाम दिया जो आज भी ठाकुर देव सिंह बिष्ट परिसर के नाम से जाना जाता है. बताया कि इसके अलावा दान सिंह बिष्ट निर्धन बच्चों को स्कॉलरशिप भी देते थे. कहा कि दान सिंह बिष्ट ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन आज का उत्तराखंड दान सिंह बिष्ट के योगदान को भूल चुका है और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को आज भी नहीं सराहा जाता है. जो बेहद दुःख की बात है.
टिंबर किंग ऑफ इण्डिया कहलाते थे दान सिंह बिष्ट….
दान सिंह बिष्ट पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गांव के रहने वाले थे. जिनके पिता का नाम देव सिंह बिष्ट था जो एक घी के व्यापारी थे. लेकिन दान सिंह बिष्ट ने व्यापार में कदम रखते हुए लकड़ी का कारोबार शुरू किया और अपने भाई मोहन सिंह बिष्ट के साथ मिलकर उन्होंने दान सिंह मोहन सिंह ‘मालदार’ कंपनी की स्थापना करी. दान सिंह बिष्ट का कारोबार इतना फैला था की उस समय उन्हें टिंबर किंग ऑफ इण्डिया भी कहा जाता था. इसके अलावा उन्होंने ग्रीन गोल्ड ऑफ कुमाऊं को भी बढ़ावा दिया और 1920 के आस पास दो चाय बागान की भी स्थापना की जिनमे से एक बेरीनाग और दूसरा चौकोड़ी में स्थित है.
