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बता दें कि भारतीय वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, लेकिन इन दिनों उत्तराखंड कैडर के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी चर्चा का विषय बने हुए हैं। संजीव चतुर्वेदी लगातार उत्तराखंड में भ्रष्टाचार की जड़ें खोदने में लगे हुए हैं। संजीव चतुर्वेदी लगातार उत्तराखंड वन विभाग में पनप रहे भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे हैं। हाल ही में संजीव चतुर्वेदी ने मसूरी फॉरेस्ट और देहरादून फॉरेस्ट में लगने वाली मियावाकी तकनीक से पौधों की खरीद में होने वाले भ्रष्टाचार को रोका था। अब उन्होंने मसूरी फॉरेस्ट में 7375 बाउंड्री पिलर के गायब होने की अपनी एक रिपोर्ट से पूरे वन महकमे को हिला कर रख दिया है।

वैसे तो उत्तराखंड वन महकमे में उनके पास कोई खास पोस्टिंग नहीं है, लेकिन अपनी हर पोस्टिंग को खास बना देने वाले संजीव चतुर्वेदी इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं।

बता दें कि संजीव चतुर्वेदी, स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे कम उम्र के सिविल सेवक हैं, जिन्हें मात्र 40 वर्ष की आयु में मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया, वहीं किरण बेदी को 55 वर्ष की आयु में और शेषन व लिंगदोह को 60 वर्ष की आयु में यह सम्मान मिला।

संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ हरियाणा राज्य द्वारा लगाए गए अवैध आदेशों को रद्द करने में भारत के राष्ट्रपति द्वारा चार बार अभूतपूर्व हस्तक्षेप किए गए, सबसे पहले 2008 में संजीव चतुर्वेदी के अवैध निलंबन को रद्द किया गया, इसके बाद 2011 में एक विभागीय चार्जशीट को रद्द किया गया, जिसमें विशेष रूप से उल्लेख किया गया कि संजीव चतुर्वेदी को चार्जशीट इस कारण से दिया गया था कि वे सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को लागू कर रहे थे और कानून के शासन को बनाए रख रहे थे। 2013 में उनके खिलाफ एक और विभागीय चार्जशीट रद्द की गई और 2014 में वर्ष 2010–11 और 2011–12 की शून्य मूल्यांकन रिपोर्ट को उत्कृष्ट के रूप में बहाल किया गया। आजाद भारत में किसी एक अधिकारी के लिए इतने सारे राष्ट्रपति आदेश होना अभूतपूर्व है।

संजीव चतुर्वेदी की कानूनी योग्यता और ईमानदारी को लगातार सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और CAT के लिखित आदेशों में सराहा गया है। विशेष रूप से, उत्तराखंड उच्च न्यायालय की डिवीज़न बेंच ने सितंबर 2021 में उनकी सेवा के दौरान विशेष न्यायिक प्रशंसा आदेश जारी किया, जो किसी भी वर्तमान अधिकारी के लिए पहली बार हुआ।

उनके द्वारा अब तक दिल्ली, नैनीताल और चंडीगढ़ उच्च न्यायालयों में दस मुकदमे पेश किए और सभी में जीत हासिल की। इनमें दिल्ली उच्च न्यायालय में 2017 का IB के खिलाफ RTI अधिनियम में मुकदमा और नैनीताल उच्च न्यायालय में 2018 का CAT अध्यक्ष को डिवीज़न बेंच की कार्यवाही रोकने का अधिकार देने वाला महत्वपूर्ण निर्णय शामिल हैं।

साथ ही, संजीव चतुर्वेदी ने वर्ष 2012–2014 के दौरान AIIMS में रिकॉर्ड 200 भ्रष्टाचार मामलों में कार्रवाई की, जिनमें तब के AIIMS निदेशक एम. सी. मिश्रा, 1982 बैच HP कैडर IAS विनीत चौधरी और 1993 बैच TN कैडर IPS शैलेश यादव शामिल थे। इस असाधारण कार्यकुशलता और पूर्ण ईमानदारी के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने मई 2014 में लिखित प्रशंसा जारी की थी।

संजीव चतुर्वेदी के करियर में कई अनूठी और अभूतपूर्व घटनाएं दर्ज हैं, जो न केवल उनके व्यक्तिगत साहस और ईमानदारी का परिचय देती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि किसी भी प्रशासनिक चुनौती का मुकाबला न्याय और कानूनी ज्ञान से किया जा सकता है।

पहली बार 2012 में, स्वास्थ्य संबंधी संसदीय समिति ने पार्टी रेखाओं से परे जाकर विशेष रूप से उनके लिए तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव से प्रतिबद्धता ली। इसके बाद अगस्त 2014 में, जब समिति में NDA बहुमत था, इसने स्वास्थ्य मंत्रालय की कड़ी आलोचना की और उनको हटाए जाने के फैसले पर गंभीर टिप्पणी की।

संजीव चतुर्वेदी जी के नेतृत्व में किए गए संरक्षण कार्यों में विश्व का पहला लाइकेन गार्डन, भारत का पहला मॉस गार्डन, पहला क्रिप्टोगामिक गार्डन, पहला फ़ॉरेस्ट हीलिंग सेंटर, उच्चतम ऊंचाई वाला हर्बल गार्डन, पहला पोलिनेटर पार्क, पहला ग्रास कंजरवेटरी, सबसे बड़ा एरोमैटिक गार्डन, पहला भारत वाटिका और अद्वितीय एथनोबोटैनिकल गार्डन शामिल हैं। इन सभी को लगातार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री द्वारा सोशल मीडिया और वार्षिक रिपोर्ट में सराहा गया।

सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों, CAT और अन्य केंद्रीय संस्थानों के साथ कई कड़े मुकदमों के बावजूद, संजीव चतुर्वेदी को पुलिस अकादमी हैदराबाद, IAS अकादमी मसूरी, फॉरेस्ट अकादमी देहरादून, IITs और यहां तक कि अंतरिक्ष विभाग द्वारा गवर्नेंस और संवैधानिक सुरक्षा विषयों पर अतिथि प्राध्यापक के रूप में आमंत्रित किया गया।

आजाद भारत के प्रशासनिक इतिहास में यह केवल दूसरी बार हुआ कि एक All India Service अधिकारी को राज्य सरकार की असहमति के बावजूद केंद्र द्वारा सीधे मुक्त किया गया, अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री द्वारा संजीव चतुर्वेदी के लिए टेलीफोन कॉल रिकॉर्ड पर था, जबकि नवंबर 2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री को प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी। इससे पहले, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिखित आदेश पर यह सुनिश्चित किया गया था कि संजीव चतुर्वेदी जी को हटाने से पहले व्यक्तिगत संतोष और PMO की मंजूरी आवश्यक है।

संजीव चतुर्वेदी विपरीत परिस्थितियों में भी ईमानदारी से काम करने वालों के लिए एक बड़ी मिसाल हैं। फिलहाल संजीव चतुर्वेदी उत्तराखंड में वन महकमे में कार्ययोजना में तैनात हैं और निरंतर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना काम कर रहे हैं। संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि उनके दादा फ्रीडम फाइटर थे, उनमें देश के लिए वही जज्बा है। भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खा रहा है, उसको खत्म करना ही उनका मकसद है जिसके लिए लगातार वो लड़ते रहेंगे।


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